लेखक शिवपाल सिंह यादव के बारे में

सहज, सरल, संवेदनशील और सामाजिक सरोकारों के जुड़ी गतिविधियों में गहरी अभिरूचि रखने वाले शिवपाल सिंह यादव अपनी वय तथा कद के नेताओं में सबसे अलग और विशिष्ट हैं। राजनीति की कठोर वीथिका से गुजरते हुए तमाम कटु अनुभवों के बावजूद उन्होंने अपने व्यक्तित्व की मधुरिमा व स्वाभाविकता को बचाये रखा। वे उन कई नेताओं में अग्रगण्य हैं, जिनसे आम कार्यकर्ता और गरीब व्यक्ति कोई भी बात कह सकता है। वंचितों, कमजोरों और उपेक्षितों के दुःख दर्द, दंश-दलन व पीड़ा की उन्हें गहरी समझ है। मैंने हमेशा उनके वाणी व व्यवहार में असहायों की पीड़ा दूर करने की बेचैनी देखी है। ’’छोटे लोहिया’’ जनेश्वर मिश्र जी अक्सर उनकी बेबाकीपन तथा निश्छलता के कारण प्रशंसा किया करते थे और उन्हें ’’कमजोरों तथा कार्यकर्ताओं का आदमी’’ कहा करते थे। एक अभिभावक की भाँति युवाओं के साथ खड़े होने के गुण के कारण वे ’’चाचा के विरुद (उपाधि) से नवाजे गये। वे जब सरकार में होते हैं, तो वो गरीबों और वंचितों के जीवनमान तथा रहन-सहन के स्तर को बेहतर बनाने के लिए कार्य-योजनायें बनाकर दृढ़तापूर्वक लागू करवाते हैं और जब विपक्ष में होते हैं तो जन-संघर्षों की अगुवाई करते हुए अगली कतार में खड़े नजर आते हैं। उन्हें ’’नेताजी’’ श्रद्धेय मुलायम सिंह का ’’लक्ष्मण’’ और ’’हनुमान’’ दोनों कहा जाय तो अतिश्योक्तिपूर्ण कथन नहीं होगा, उन्होंने विभिन्न मोड़ों, परीक्षाओं और अवसरों पर स्वयं को सिद्ध किया और जीवन का संकट उठाकर भी वे हर संघर्ष में नेताजी के साथ प्रतिच्छाया बनकर साथ चले। अपनी विनम्रता तथा कत्र्तव्यनिष्ठा के कारण ही वे सर्वश्री जनेश्वर मिश्र, बाबू कपिलदेव सिंह, रामशरण दास, रमाशंकर कौशिक से लेकर आज के हम जैसे युवा समाजवादियों के स्नेह व सम्मान के केन्द्र रहे हैं। उन्होंने दो पीढ़ी के समाजवादियों के मध्य सेतु का काम किया है।

बसंत पंचमी के पवित्र दिन 1955 में पिता सुघर सिंह तथा माता मूर्ति देवी के कनिष्ठ पुत्र के रूप में जन्मे शिवपाल सिंह जी को मानवता के प्रति उदात्त भाव विरासत में मिला। उन्होंने जनसंघर्षों में भाग लेना और नेतृत्व करना अपने नेता व अग्रज मुलायम सिंह से सीखा। सामाजिक व राजनीतिक गतिविधियों में वे बाल्यकाल से ही सक्रिय रहे। क्षेत्र में घूम-घूमकर मरीजों को अस्पताल पहुँचाना, थाना-कचहरी में गरीबों को न्याय दिलाने के लिए प्रयास करना व सोशलिस्ट पार्टी के कार्यक्रमों में भाग लेना उनका प्रिय शगल था। वे नेताजी के चुनावों में पर्चें बाँटने से लेकर बूथ-समन्वयक तक की जिम्मेदारी उठाते रहे। मधु लिमये, बाबू कपिलदेव, चैधरी चरण सिंह, जनेश्वर जी जैसे बड़े नेताओं के आगमन पर उनकी सभा करवाने का भी गुरुतर भार शिवपाल जी के ही कंधे पर होता था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गांव के प्राथमिक विद्यालय से हुई फिर जैन इण्टर कालेज, करहल (मैनपुरी) में इण्टरमीडिएट तक की पढ़ाई की फिर उन्होंने स्नातक और डीपीएड किया। वे राजनीतिक झंझावातों और बढ़ती जिम्मेदारियों के कारण परास्नातक प्रथम वर्ष की परीक्षा देने के आगे नहीं पढ़ सके। वे कुश्ती के अच्छे खिलाड़ी रहे। शिक्षा पूरी करने के बाद शिक्षण करने लगे, लेकिन नियति उनसे राजनीति और जनसेवा करवाना चाहती थी। 1974 से वे सक्रिय और चुनावी राजनीति में खुलकर भाग लेने लगे। 80-90 के दशक के पूवार्द्ध से वे पूरी तरह राजनीति में रम गये फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने गांव और गरीब के पक्ष की बात की, सहकारिता आन्दोलन से जुड़े। अपनी राजनीतिक यात्रा जिला सहकारी बैंक का चुनाव जीतकर प्रारंभ किया जो आज तक अनवरत चल रहा है। वे 1988 से 1991 और पुनः 1993 में जिला सहकारी बैंक, इटावा के अध्यक्ष चुने गये। 1995 से लेकर 1996 तक इटावा के जिला पंचायत अध्यक्ष भी रहे। इसी बीच 1994 से 1998 के अंतराल में उत्तरप्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक के भी अध्यक्ष का दायित्व संभाला। तेरहवीं विधानसभा में वे जसवन्तनगर से विधानसभा का चुनाव लड़े और ऐतिहासिक मतों से जीते। इसी वर्ष वे समाजवादी पार्टी के प्रदेश महासचिव बनाये गये। उन्होंने संगठन को मजबूत बनाने के लिए अनिर्वचनीय मेहनत की। पूरे उत्तर प्रदेश को कदमों से नाप दिया। उनकी लोकप्रियता और स्वीकारिता बढ़ती चली गयी। प्रमुख महासचिव के रूप में उन्होंने अपनी जिम्मेदारी को नया आयाम दिया। प्रदेश अध्यक्ष रामशरण दास जी की अस्वस्थता को देखते हुए 01 नवम्बर, 2007 को मेरठ अधिवेशन में शिवपाल जी को कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया।

रामशरण जी के महाप्रयाण के पश्चात् 6 जनवरी, 2009 को वे पूर्णकालिक प्रदेश अध्यक्ष बने। शिवपाल जी ने सपा को और अधिक प्रखर बनाया। नेताजी और जनेश्वर जी के मार्गदर्शन और उनकी अगुवाई में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में स्थापित हुई। वे मई 2009 तक प्रदेश अध्यक्ष रहे फिर उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता विरोधी दल की भूमिका दी गई। बसपा की बहुमत की सरकार के समक्ष नेता विरोधी दल की जिम्मेदारी तलवार की धार पर चलने जैसा था। उन्होंने इस दायित्व को संभाला और विपक्ष तथा आम जनता के प्रतिकार के स्वर को ऊँचा रखा। वरिष्ठ नेता आज़म खान की वापसी के दिन उन्होंने नेता प्रतिपक्ष पद से इस्तीफा देने में एक पल का भी विलम्ब नहीं किया, जो दर्शाता है कि उन्हें पद से अधिक सिद्धान्त और दलहित प्रिय है। बाढ़-सूखा, भूकम्प जैसी आपदाओं में जाकर मदद करने वालों में शिवपाल आगे खड़े रहते हैं। उन्होंने कई बार गिरफ्तारी दी, पुलिसिया उत्पीड़न को झेला, आम कार्यकर्ताओं के रक्षा कवच बने। यही कारण है कि सोलहवीं विधानसभा में समाजवादी पार्टी के चुनाव निशान पर साठ फीसदी (61.90%) से अधिक मतों से जीतने वाले एक मात्र विधायक हैं।

’’हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी
जिसको भी देखना कई बार देखना ’’

यह शेर चाहे जिस सन्दर्भ में लिखा गया होगा, शिवपाल जी के व्यक्तित्व के परिप्रेक्ष्य में सटीक प्रतीत होता है। यतीम बच्चों के बीच भारी बरसात के बावजूद जाकर ईद मनाना, कैबिनेट की मीटिंग के दिन चन्द्रशेखर आजाद की जयन्ती मनवाना, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को सम्मानित करवाना, गरीबों को जन सहयोग से कड़कड़ाती सर्दी में कम्बल बाँटना व बँटवाना जैसे कई दृष्टान्त मिल जायेंगे, जो उन्हें संवेदनशील व्यक्ति के रूप में रेखांकित करते हैं।

उन्होंने समय-समय पर कभी डा0 लोहिया, कभी अशफाक उल्ला खान, कभी चन्द्रशेखर आजाद तो कभी मधु लिमये की जयन्ती और अन्य अवसरों पर लेख लिखकर, छोटी-छोटी पुस्तकें प्रकाशित कर बँटवाकर नई पीढ़ी को गौरवमयी इतिहास से अवगत कराने का कार्य किया है। उनके अब तक दर्जनों लेख दैनिक जागरण, अमर उजाला, राष्ट्रीय सहारा, जनाग्रह (बंगलुरू), डेली न्यूज एक्टिविस्ट, जन संदेश, कैनविज टाइम्स समेत कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। उन्होंने डा0 लोहिया के कई ऐतिहासिक उद्बोधनों यथा ’’द्रौपदी व सावित्री’’ दो कटघरे आदि को प्रकाशित कर बँटवाया और समाजवादी पार्टी में पढ़ने-लिखने की परम्परा को प्रोत्साहन दिया। वे साहित्यकारों का काफी सम्मान करते हैं। गोपालदास ’’नीरज’’ उदय प्रताप सिंह जैसे साहित्यकार व कवि उन्हें काफी स्नेह करते हैं, जिससे उनकी साहित्यिक अभिरूचि का पता चलता है। विपक्ष के दौरान उन्होंने जन संघर्षों व सामूहिक प्रतिकार के प्रत्येक रण में सेनानी की भूमिका निभाई। कई बार जेल गये, आन्दोलनों में चोटिल हुए पर जब भी आन्दोलन की घोषणा होती, शिवपाल जी प्रथम पंक्ति में खड़े दिखते। समाजवादी पार्टी की 2012 में पुनः सरकार बनने के बाद उन्हें लोक निर्माण, सिंचाई, सहकारिता मंत्री की जिम्मेदारी दी गयी, उन्होंने इन विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए कई बड़े अधिकारियों व अभियन्ताओं के विरुद्ध कठोर कार्यवाही की, एक अखबार ने उन्हें ’’कार्यवाही मिनिस्टर’’ तक की संज्ञा दे दी।

उनका इतिहास समाजवादी पार्टी का इतिहास है, जन-संघर्षों व सक्रिय करूणा का जीवन-दर्शन है।

  पिता : स्व0 सुघर सिंह यादव
  माता : श्रीमती मूर्ति देवी
  जन्मतिथि : बसंत पंचमी 1955
  जन्मस्थान : सैफई (इटावा)
  शिक्षा : स्नातक, डी0पी0एड0 (कानपुर एवं लखनऊ विश्वविद्यालय)
  विवाह तिथि : 23 मई, 1981
  पत्नी का नाम : श्रीमती सरला यादव
  सन्तान : एम पुत्र, एक पुत्री
 सितम्बर, अक्टूबर 1996 : तेरहवीं विधानसभा के सदस्य (पहली बार निर्वाचित) अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा विमुक्त जातियों सम्बन्धी संयुक्त समिति के सदस्य।
  फरवरी-2002 : चैदहवीं विधानसभा के सदस्य (दूसरी बार निर्वाचित)।
  2002-2003 : सदस्य, लोक-लेखा समिति,सदस्य, सार्वजनिक उपक्रम एवं निगम संयुक्त समिति
  सितम्बर 2003 से मई 2007 तक : मंत्री, कृषि, लोक-निर्माण, भूतत्व एवं खनिकर्म तथा ऊर्जा (श्री मुलायम सिंह यादव मंत्रिमण्डल)
  अप्रैल-मई 2007 : पन्द्रहवीं विधानसभा के सदस्य (तीसरी बार निर्वाचित)
  2007-2012 : सदस्य, कार्य मंत्रणा समिति
  मई 2009 : नेता विरोधी दल, उ0प्र0 विधानसभा
  2012, मार्च : सोलहवीं विधानसभा के सदस्य (चैथी बार निर्वाचित),मंत्री-लोक निर्माण, सिंचाई, सहकारिता, (श्री अखिलेश यादव मंत्रिमण्डल)
  2012 से 2013 : सदस्य, कार्यमंत्रणा समिति
  विशेष अभिरूचि : जनसेवा, अध्ययन
  विदेश यात्रा : जापान, हांगकांग, थाईलैण्ड, इजरायल, दक्षिण अफ्रीका
  अन्य दायित्व : अध्यक्ष, जिला सहकारी बैंक (1988-1991, पुनः 1993 से)
अध्यक्ष, उ0प्र0 प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक (1994-1998),
अध्यक्ष, चैधरी चरण सिंह डिग्री कालेज (1990 से),
अध्यक्ष, डा0 राम मनोहर लोहिया इण्टर कालेज, धनुवा व गीजा (वर्ष 1994 से),
अध्यक्ष, एस0एस0 मेमोरियल पब्लिक स्कूल, सैफई इटावा (1995 से),
प्रबन्धक, कुँवर मनभावति जनसेवा इण्टर कालेज,
प्रबन्धक, मनभावति कन्या इण्टर कालेज, बसहेरा (इटावा)